Saturday, 29 November 2014

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प्रश्न : मेरे दफ़्तर में कुछ लोग ’आर्ट ओफ़ लिविन्ग’ के बारे में उलटा सीधा कहते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता पर मैं नज़र अन्दाज़ कर देता हूँ। मुझे ऐसे में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : ऐसा है क्या जिसके बारे में वो बुरा कह सकते हैं? यह सब उनकी कल्पना है। तुम जो कर सकते हो, करते रहो। उन्हे भी इसका एहसास हो जाएगा। अतीत में भी कई संतों के साथ ऐसा हुआ। कई लोग उन्हें पसन्द करते थे, और ज्ञान प्राप्त कर उसका लाभ ले सके। कई लोग उन्हे नापस्न्द करते थे। इससे क्या फ़र्क पड़ता है? ’आर्ट ओफ़ लिविन्ग’ एक शिक्षा है। क्या शिक्षा निशुल्क होनी चाहिए? अगर होनी चाहिए तो मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की शिक्षा भी निशुल्क होनी चाहिए। और अगर बाकी की नहीं है तो आध्यात्म की शिक्षा क्यों निशुल्क होनी चाहिए? अतीत में भी दक्षिणा की प्रणाली थी। दक्षिणा दिए बिना शिक्षा पूर्ण नहीं होती। और कोर्स का खर्च निकालने के बाद जो धन राशि आती है उससे हम समाज में कितना कार्य कर रहे हैं। कई लोग ईर्ष्या के कारण भी कुछ गलत बातें फ़ैलाते हैं। इससे पता चलता है हमे अभी और बहुत काम करने की ज़रुरत है, और यह ज्ञान अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचना कितना आवश्यक है। जिसने भी यह ज्ञान अपने जीवन में उतारा है, उनका जीवन परिवर्तित हो गया है।

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